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पेट के कैंसर के लिए शुरुआती जांच और स्क्रीनिंग क्यों जरूरी है

पेट का कैंसर (stomach cancer in hindi) एक गंभीर और जानलेवा बीमारी मानी जाती है। यह धीरे-धीरे बढ़ती है और लंबे समय तक सामान्य पेट की समस्याओं जैसी लगती है। यही वजह है कि अधिकांश मामलों में मरीज को तब तक पता नहीं चलता जब तक कैंसर काफी आगे नहीं बढ़ जाता। जब तक लक्षण स्पष्ट रूप से सामने आते हैं, तब तक इलाज कठिन हो जाता है और जीवन बचाने की संभावना भी कम हो जाती है।
इस बीमारी से निपटने का सबसे प्रभावी तरीका है समय रहते इसकी पहचान करना। शुरुआती अवस्था में अगर पेट का कैंसर पकड़ में आ जाए तो न केवल इलाज आसान हो जाता है, बल्कि मरीज जल्दी स्वस्थ भी हो सकता है। इस चरण में सर्जरी कम जटिल होती है, दवाओं की आवश्यकता कम पड़ती है और अस्पताल में भर्ती रहने का समय भी कम होता है। इसके साथ ही मरीज की जीवन गुणवत्ता पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
इसलिए जरूरी है कि जिन लोगों को लगातार पेट से जुड़ी समस्याएँ, जैसे भूख कम लगना, पेट दर्द या वजन घटना जैसी परेशानियाँ रहती हैं, वे समय-समय पर जांच कराते रहें। शुरुआती जांच और स्क्रीनिंग न केवल बीमारी को नियंत्रित करती है, बल्कि जीवन बचाने का सबसे बड़ा साधन भी है।
पेट का कैंसर क्या है (Stomach cancer in hindi)
पेट का कैंसर (Stomach cancer in hindi) , जिसे गैस्ट्रिक कैंसर भी कहा जाता है, पेट की अंदरूनी परत की कोशिकाओं में असामान्य बदलाव (mutation) के कारण होता है। इन कोशिकाओं का अनियंत्रित रूप से बढ़ना ट्यूमर का रूप ले लेता है। धीरे-धीरे यह कैंसर पेट की भीतरी परतों को पार कर सकता है और शरीर के अन्य अंगों जैसे यकृत (liver), अग्नाशय (pancreas), अन्ननली (esophagus) और आंतों तक फैल सकता है।
समस्या यह है कि इसकी शुरुआत अक्सर बिना खास लक्षण के होती है, जिससे मरीज को समय रहते पता नहीं चल पाता। यही वजह है कि अधिकतर मामलों में यह बीमारी तब पकड़ी जाती है जब यह पहले ही बढ़ चुकी होती है। अगर शुरुआती चरण में पहचान हो जाए तो सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी जैसे उपचार से इसका इलाज संभव होता है।
शुरुआती जांच और स्क्रीनिंग क्यों जरूरी है?
1.पेट के कैंसर की गंभीरता
पेट का कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो धीरे-धीरे विकसित होती है, लेकिन समय पर इलाज न मिलने पर जानलेवा साबित हो सकती है। इसकी सबसे बड़ी चुनौती यह है कि शुरुआती चरण में लक्षण अक्सर हल्के होते हैं या सामान्य पेट की समस्याओं जैसे लगते हैं। इस कारण लोग समय रहते जांच नहीं करा पाते और कैंसर बढ़ता चला जाता है।
2.शुरुआती पहचान का महत्व
अगर पेट का कैंसर शुरुआती अवस्था में पकड़ में आ जाए तो उपचार की सफलता दर कई गुना बढ़ जाती है। इस चरण में कैंसर अपेक्षाकृत छोटा होता है और शरीर के अन्य हिस्सों में नहीं फैला होता। ऐसे में सर्जरी सरल रहती है, जटिलताएँ कम होती हैं और मरीज जल्दी ठीक हो सकता है।
3.एंडोस्कोपिक स्क्रीनिंग के फायदे
शोध यह बताते हैं कि नियमित एंडोस्कोपिक स्क्रीनिंग कराने से पेट के कैंसर से होने वाली मृत्यु दर में कमी आती है। एंडोस्कोपी के दौरान डॉक्टर पेट की अंदरूनी परत को बारीकी से देख सकते हैं और किसी भी असामान्य वृद्धि या बदलाव को तुरंत पकड़ सकते हैं। खास बात यह है कि कैंसर बनने से पहले के परिवर्तन, जैसे प्रीकैंसरस घाव, भी इस जांच से समय पर पहचाने जा सकते हैं।
4.कम खर्च और बेहतर जीवन गुणवत्ता
जब कैंसर समय रहते पहचान में आता है तो उसका इलाज न केवल कम खर्चीला होता है बल्कि अपेक्षाकृत सरल भी होता है। मरीज को लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती नहीं रहना पड़ता और दवाइयाँ भी कम लेनी पड़ती हैं। इसके साथ ही भूख की कमी, वजन घटना, थकान और लगातार दर्द जैसी परेशानियों से भी काफी हद तक राहत मिलती है।
पेट के कैंसर के शुरुआती लक्षण
पेट के कैंसर की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसके शुरुआती लक्षण बहुत हल्के होते हैं और सामान्य पेट की परेशानियों जैसे महसूस होते हैं। इसी वजह से लोग अक्सर इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं या गैस्ट्रिक समस्या, बदहजमी या एसिडिटी समझकर साधारण दवाओं से इलाज करते रहते हैं।
1.आम शुरुआती लक्षण
पेट के कैंसर की शुरुआत में मरीज को खाने के बाद पेट भारी लगना या जल्दी पेट भर जाने जैसी समस्या महसूस हो सकती है। भूख कम लगना और ऊपरी पेट या नाभि के ऊपर हल्का दर्द होना भी इसके संकेत हो सकते हैं। इसके अलावा खट्टी डकार आना, सीने में जलन, अपच, जी मिचलाना और कभी-कभी उल्टी में खून आना भी कैंसर की ओर इशारा कर सकता है।
2.गंभीर संकेत
शरीर में बिना किसी कारण वजन घटना, लगातार थकान महसूस होना और कमजोरी भी ऐसे लक्षण हैं जिन्हें अनदेखा नहीं करना चाहिए। कुछ मरीजों में मल में खून आना या मल का रंग काला पड़ जाना दिखाई देता है। यह आंतरिक खून बहना का संकेत हो सकता है। लंबे समय तक खून की कमी यानी आयरन डेफिशियेंसी एनीमिया भी पेट के कैंसर का एक अप्रत्यक्ष लक्षण है।
किन लोगों को स्क्रीनिंग करानी चाहिए?
हर किसी को पेट के कैंसर की स्क्रीनिंग की जरूरत नहीं होती, लेकिन कुछ लोगों के लिए यह बहुत जरूरी है। यदि परिवार में किसी को पेट का कैंसर रहा हो, अगर किसी को एच. पाइलोरी संक्रमण या अल्सर का इतिहास रहा हो, पुराना गैस्ट्राइटिस या गैस्ट्रिक चोटें हों, या किसी की उम्र 50 वर्ष से ऊपर हो तो उन्हें नियमित रूप से जांच करानी चाहिए। इसके अलावा धूम्रपान करने वाले, अधिक नमक वाला आहार लेने वाले और लगातार पेट की समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए स्क्रीनिंग बेहद आवश्यक है।
जांच और स्क्रीनिंग के तरीके
1.एंडोस्कोपी या गैस्ट्रोस्कोपी
पेट के कैंसर की शुरुआती जांच में सबसे भरोसेमंद तरीका एंडोस्कोपी है। इसमें एक पतली और लचीली नली, जिसके आगे कैमरा होता है, मुंह या गले से होकर पेट तक डाली जाती है। इस कैमरे की मदद से डॉक्टर पेट की अंदरूनी परत को साफ देख सकते हैं और किसी भी असामान्य वृद्धि, घाव या ट्यूमर की पहचान कर सकते हैं। अगर कोई संदिग्ध हिस्सा दिखे, तो उसी समय बायोप्सी भी की जाती है।
2.बायोप्सी
बायोप्सी के दौरान संदिग्ध ऊतक का छोटा सा नमूना लिया जाता है। इसे माइक्रोस्कोप के तहत जांचा जाता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि वहां कैंसर कोशिकाएँ मौजूद हैं या नहीं। यह प्रक्रिया कैंसर की पुष्टि करने में सबसे अहम मानी जाती है।
3.रासायनिक परीक्षण (Biomarkers)
कुछ मामलों में खून या सीरम के जरिए रासायनिक परीक्षण किए जाते हैं, जिनमें ऐसे संकेतकों को खोजा जाता है जो कैंसर से संबंधित हो सकते हैं। हालांकि ये टेस्ट अभी पूरी तरह मानक नहीं माने जाते, लेकिन कभी-कभी यह शुरुआती चेतावनी देने में मददगार साबित होते हैं।
4.इमेजिंग तकनीकें
एंडोस्कोपी और बायोप्सी के अलावा सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड और एमआरआई जैसी इमेजिंग तकनीकें भी उपयोगी होती हैं। इनसे ट्यूमर का आकार, उसकी स्थिति और यह कितना फैला है, इसकी जानकारी मिलती है।
5.पुन: स्क्रीनिंग
जिन लोगों में पहले से कोई असामान्यता, जैसे गैस्ट्रिक आंत्र मेटाप्लासिया या पुराना गैस्ट्राइटिस पाया गया हो, उन्हें हर 1 से 2 साल में दोबारा स्क्रीनिंग करानी चाहिए। इससे बीमारी को शुरुआती चरण में पकड़ा जा सकता है और उपचार की सफलता दर बढ़ जाती है।
आज ही परामर्श लें
पेट का कैंसर एक गंभीर बीमारी है, लेकिन इसकी शुरुआती पहचान और सही इलाज से जीवन बचाया जा सकता है। नियमित जांच और समय पर स्क्रीनिंग इसकी रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अगर आपको लंबे समय से पेट संबंधी समस्याएँ हो रही हैं तो लापरवाही न करें। बेहतर और आधुनिक उपचार के लिए Oncare Hospital सबसे विश्वसनीय विकल्प है, जहाँ विशेषज्ञ टीम मरीजों को संपूर्ण देखभाल प्रदान करती है।
Frequently Asked Questions
यह ज्यादातर अस्वस्थ आहार, धूम्रपान, अधिक नमक वाले भोजन, एच. पाइलोरी संक्रमण और पारिवारिक इतिहास के कारण हो सकता है।
खाने के बाद पेट भारी लगना, भूख कम होना, अपच, वजन घटना और लगातार थकान इसके आम शुरुआती संकेत हैं।
सबसे भरोसेमंद तरीका एंडोस्कोपी और बायोप्सी है। इसके अलावा सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड और एमआरआई भी उपयोग किए जाते हैं।
हाँ, अगर शुरुआती अवस्था में पहचान हो जाए तो सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडिएशन से इसे सफलतापूर्वक ठीक किया जा सकता है।
50 वर्ष से अधिक उम्र वाले, पारिवारिक इतिहास वाले, धूम्रपान करने वाले या लगातार पेट की समस्याओं से जूझ रहे लोगों को नियमित स्क्रीनिंग करानी चाहिए।
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