लंग कैंसर: कारण, लक्षण, प्रकार, स्टेज और इलाज की जानकारी

oncare team
Updated on Sep 3, 2025 18:27 IST

By Prashant Baghel

लंग कैंसर फेफड़ों से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है, जिसमें फेफड़ों की कोशिकाएँ असामान्य तरीके से बढ़ने लगती हैं और शरीर के नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं। यह असामान्य एक गाँठ या ट्यूमर का रूप ले सकती है, जो धीरे-धीरे फेफड़े के सामान्य कामकाज को बाधित करती है। समय पर इलाज न होने पर यह कैंसर शरीर के दूसरे हिस्सों, जैसे हड्डियों, लिवर और मस्तिष्क तक फैल सकता है।

इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण धूम्रपान है। लेकिन इसके अलावा दूसरे के धुएँ का असर (पैसिव स्मोकिंग), गंदी हवा/प्रदूषण, फैक्ट्री में रसायनों का ज्यादा संपर्क और परिवार से जुड़ी आदतें या जीन भी इसकी वजह बन सकते हैं। शुरुआत में इसके लक्षण अक्सर आम सर्दी-खाँसी या थकान जैसे लगते हैं, इसलिए लोग ध्यान नहीं देते। अगर लगातार खाँसी, खाँसी में खून, साँस लेने में दिक्कत, सीने में दर्द या अचानक वजन कम होना जैसी समस्या हो, तो यह लंग कैंसर का संकेत हो सकता है।

अच्छी बात यह है कि यदि इसे शुरुआती स्टेज में पहचान लिया जाए तो इलाज सफल हो सकता है। आधुनिक चिकित्सा पद्धतियाँ जैसे सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, टार्गेटेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी लंग कैंसर के इलाज में उपयोगी हैं। इसके साथ ही संतुलित आहार, धूम्रपान छोड़ना और स्वस्थ जीवनशैली अपनाना इसके खतरे को कम करने में मदद करता है।

लंग कैंसर क्या है?

लंग कैंसर एक गंभीर रोग है, जो फेफड़ों की कोशिकाओं में तब विकसित होता है जब ये कोशिकाएँ असामान्य तरीके से बढ़ने और विभाजित होने लगती हैं। सामान्य परिस्थितियों में कोशिकाएँ शरीर की ज़रूरत के अनुसार बढ़ती और मरती हैं, लेकिन कैंसर में यह प्रक्रिया नियंत्रण से बाहर हो जाती है और कोशिकाएँ लगातार बढ़कर एक गाँठ या ट्यूमर बना लेती हैं। यह ट्यूमर धीरे-धीरे फेफड़ों के सामान्य कार्यों, जैसे ऑक्सीजन को शरीर में पहुँचाना और कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालना को प्रभावित करने लगता है।

लंग कैंसर केवल फेफड़ों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि खून और लिम्फ सिस्टम के ज़रिए शरीर के अन्य अंगों जैसे हड्डियाँ, जिगर (लिवर) और मस्तिष्क तक फैल सकता है। इस स्थिति को मेटास्टेसिस कहा जाता है। जब कैंसर फैल जाता है तो इसके इलाज की जटिलता और जोखिम बढ़ जाते हैं।

इस बीमारी के शुरुआती लक्षण अक्सर साधारण सर्दी-खाँसी या संक्रमण जैसे लगते हैं, जिस कारण कई बार लोग इसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं। लगातार खाँसी, खाँसी में खून आना, साँस लेने में कठिनाई, आवाज़ बैठना, सीने में दर्द और अचानक वजन घटने जैसे लक्षण लंग कैंसर के संकेत हो सकते हैं।

लंग कैंसर के प्रकार

लंग कैंसर मुख्य रूप से दो प्रमुख प्रकारों में पाया जाता है, जिन्हें समझना बहुत ज़रूरी है क्योंकि इनके आधार पर ही इलाज की योजना बनाई जाती है।

1. नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर (NSCLC)

लंग कैंसर का यह प्रकार सबसे ज़्यादा जगह देखा जाता है और 80–85% मरीजों में पाया जाता है। इसमें कई तरह के उप-प्रकार शामिल होते हैं। एडेनोकार्सिनोमा वह रूप है, जो ज्यादातर महिलाओं और धूम्रपान न करने वाले लोगों में भी पाया जा सकता है। वहीं, स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा ज़्यादातर स्मोकर्स में विकसित होता है। इसके अलावा, लार्ज सेल कार्सिनोमा तेजी से बढ़ने वाला उप-प्रकार है, जो कम समय में गंभीर हो सकता है। सामान्यतः यह कैंसर धीरे-धीरे फैलता है और अगर इसे शुरुआती स्टेज पर पकड़ लिया जाए तो सफल उपचार की संभावना अधिक रहती है। इस स्थिति में डॉक्टर सर्जरी, रेडिएशन, कीमोथेरेपी या टार्गेटेड मेडिसिन जैसी आधुनिक तकनीकों का सहारा लेते हैं, जिससे मरीज की रिकवरी और जीवन की गुणवत्ता दोनों बेहतर हो सकती हैं।

2. स्मॉल सेल लंग कैंसर (SCLC)

यह प्रकार लगभग 10–15% मामलों में पाया जाता है। SCLC का सबसे बड़ा कारण धूम्रपान है और इसे “ओट सेल कैंसर” भी कहा जाता है। इसकी खासियत यह है कि यह बहुत तेज़ी से बढ़ता है और जल्दी ही शरीर के अन्य हिस्सों में फैल जाता है। यही कारण है कि इसका इलाज मुश्किल होता है। इसमें अधिकतर कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी का सहारा लिया जाता है।

दोनों प्रकार के लंग कैंसर गंभीर हैं, लेकिन उनकी पहचान और सही इलाज से मरीज की जीवन-गुणवत्ता को बेहतर किया जा सकता है।

लंग कैंसर कैसे होता है? (मुख्य कारण)

लंग कैंसर होने के पीछे कई कारण जिम्मेदार होते हैं। इनमें से कुछ हमारे जीवनशैली और आदतों से जुड़े होते हैं, जबकि कुछ पर्यावरण और जेनेटिक कारण भी शामिल हैं। आइए इन्हें विस्तार से समझते हैं:

1. धूम्रपान (Smoking)

धूम्रपान लंग कैंसर का सबसे बड़ा और प्रमुख कारण है। सिगरेट, बीड़ी, सिगार, हुक्का या यहाँ तक कि ई-सिगरेट का अत्यधिक उपयोग फेफड़ों की कोशिकाओं को सीधे नुकसान पहुँचाता है। तंबाकू के धुएँ में 7,000 से अधिक हानिकारक केमिकल पाए जाते हैं, जिनमें से कई “कार्सिनोजेनिक” यानी कैंसर पैदा करने वाले होते हैं। लंबे समय तक धूम्रपान करने से कोशिकाओं का डीएनए बदल जाता है और कैंसर की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।

2. परकिय धुआँ (Passive Smoking)

जो लोग खुद धूम्रपान नहीं करते, वे भी लंग कैंसर के खतरे से पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। यदि कोई व्यक्ति घर, ऑफिस या सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान करने वालों के पास बैठा रहता है तो वह भी उस धुएँ को साँस के साथ अंदर लेता है। इसे “परकिय धूम्रपान” या Passive Smoking कहते हैं। रिसर्च बताती है कि लंबे समय तक दूसरे के धुएँ के संपर्क में रहना, नॉन-स्मोकर्स में भी लंग कैंसर का खतरा बढ़ाता है।

3. वायु प्रदूषण (Air Pollution)

आजकल शहरों में बढ़ता प्रदूषण भी एक बड़ा कारण है। गाड़ियों का धुआँ, औद्योगिक गैसें और धूल के कण लंबे समय तक फेफड़ों में जाकर जम जाते हैं। लगातार खराब हवा में साँस लेने से फेफड़ों की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचता है और कैंसर बनने का खतरा बढ़ता है।

4. औद्योगिक रसायनों और गैसों का एक्सपोज़र

कुछ लोग ऐसे काम करते हैं जहाँ उन्हें हानिकारक रसायनों के संपर्क में रहना पड़ता है। उदाहरण के लिए, एस्बेस्टस, आर्सेनिक, निकल, क्रोमियम, डीज़ल का धुआँ और रेडॉन गैस जैसे पदार्थ। इनका लंबे समय तक एक्सपोज़र फेफड़ों को नुकसान पहुँचाता है और लंग कैंसर का जोखिम बढ़ा देता है।

5. वंशानुगत कारण (Genetics)

यदि परिवार में पहले से किसी को लंग कैंसर हुआ है, तो दूसरे सदस्यों में भी इसका खतरा थोड़ा अधिक हो जाता है। इसे “जेनेटिक प्रीडिसपोज़िशन” कहा जाता है। जीन में बदलाव के कारण फेफड़े बाहरी खतरों के प्रति नाज़ुक हो जाते हैं।

6. पूर्व फेफड़ों की बीमारियाँ

यदि किसी व्यक्ति को पहले फेफड़ों से जुड़ी गंभीर बीमारियाँ रही हों, जैसे टीबी (Tuberculosis) का दाग, क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस, या सीओपीडी (Chronic Obstructive Pulmonary Disease), तो उनमें लंग कैंसर का खतरा सामान्य व्यक्ति से अधिक होता है।

7. अस्वस्थ जीवनशैली (Unhealthy Lifestyle)

जीवनशैली भी इस बीमारी में बड़ा रोल निभाती है। पोषण की कमी, शरीर में एंटीऑक्सीडेंट्स और विटामिन्स की कमी, नियमित व्यायाम न करना, शराब का अत्यधिक सेवन और जंक फूड पर निर्भर रहना भी फेफड़ों की सेहत बिगाड़ते हैं। इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

लंग कैंसर की स्टेजिंग (चरण)

जब किसी मरीज में लंग कैंसर की पुष्टि होती है तो डॉक्टर यह जानना चाहते हैं कि यह बीमारी कितनी फैली है और किस स्तर पर है। इसे ही “स्टेजिंग” कहा जाता है। स्टेजिंग से न केवल बीमारी की गंभीरता पता चलती है बल्कि इसके आधार पर ही सही इलाज की योजना बनाई जाती है।

स्टेज 0–I: इस शुरुआती चरण में कैंसर बहुत छोटा होता है और केवल फेफड़े के एक हिस्से तक सीमित रहता है। अक्सर लक्षण स्पष्ट नहीं होते, लेकिन यदि इस स्तर पर पहचान हो जाए तो सर्जरी या रेडियोथेरेपी से पूरी तरह ठीक होने की संभावना अधिक रहती है।

स्टेज II–III: इस स्तर पर कैंसर फेफड़े से आगे बढ़कर आसपास के ऊतकों (tissues) या नज़दीकी लिम्फ नोड्स तक पहुँच जाता है। लक्षण जैसे खाँसी, साँस फूलना और सीने में दर्द अधिक स्पष्ट हो जाते हैं। इसका इलाज सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी के संयोजन से किया जाता है।

स्टेज IV: यह सबसे एडवांस चरण है जिसमें कैंसर फेफड़े से बाहर निकलकर हड्डियों, लिवर या मस्तिष्क जैसे दूसरे अंगों तक फैल जाता है। इस स्थिति में इलाज का उद्देश्य रोग को नियंत्रित करना और जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाना होता है।

आज ही परामर्श लें

लंग कैंसर के प्रभाव को कम करने का सबसे अच्छा तरीका है जागरूकता, समय पर जांच और उपयुक्त उपचार। शुरुआती पहचान से सफलता की संभावना बढ़ जाती है। आज के आधुनिक विकल्प सर्जरी, कीमोथेरपी, रेडियोथेरेपी, टार्गेटेड और इम्यूनोथेरेपी उपलब्ध हैं। भरोसेमंद और अनुभवी टीम के साथ उपचार के लिए आप Oncare Hospital से परामर्श कर सकते हैं, जहाँ रोगी-केंद्रित निगरानी और आधुनिक सुविधाएँ मिलती हैं।

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