कोलन कैंसर की जांच कैसे होती है? जानिए सभी जरूरी टेस्ट और प्रक्रिया

oncare team
Updated on Dec 24, 2025 15:06 IST

By Prashant Baghel

जब पेट से जुड़ी कोई समस्या लंबे समय तक ठीक न हो, बार-बार दर्द हो, वजन अचानक कम होने लगे या शौच की आदतों में बदलाव दिखे, तो मन में कई सवाल आने लगते हैं। अक्सर लोग इसे गैस, कब्ज या साधारण पेट की परेशानी समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन कई मामलों में यही लक्षण कोलन कैंसर की ओर इशारा कर सकते हैं। कोलन कैंसर धीरे-धीरे बढ़ने वाली बीमारी है और शुरुआत में इसके लक्षण बहुत हल्के होते हैं। इसी वजह से समय पर जांच न हो पाने पर यह गंभीर रूप ले सकता है।

यही कारण है कि लोगों के मन में सबसे अहम सवाल आता है कि कोलन कैंसर की जांच कैसे होती है और डॉक्टर इसे पहचानने के लिए कौन-कौन से टेस्ट करते हैं। सही समय पर और सही तरीके से की गई जांच न सिर्फ बीमारी की पहचान करती है, बल्कि इलाज को भी आसान और सफल बनाती है। इस लेख में हम बहुत आसान शब्दों में समझेंगे कि कोलन कैंसर की जांच कैसे होती है, कौन-सी प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं और जांच के दौरान मरीज को क्या उम्मीद रखनी चाहिए।

कोलन कैंसर क्या होता है

कोलन कैंसर बड़ी आंत यानी कोलन में होने वाला कैंसर है। यह अक्सर छोटी-छोटी गांठों से शुरू होता है, जिन्हें पॉलीप कहा जाता है। ये पॉलीप शुरू में खतरनाक नहीं होते, लेकिन समय के साथ इनमें कैंसर बनने का खतरा बढ़ सकता है। अगर इन्हें शुरुआती अवस्था में पहचान लिया जाए, तो कोलन कैंसर को रोका भी जा सकता है। इसी वजह से यह जानना बहुत जरूरी है कि कोलन कैंसर की जांच कैसे होती है और कब जांच करानी चाहिए।

कोलन कैंसर की जांच क्यों जरूरी है

कोलन कैंसर की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि शुरुआती स्टेज में इसके लक्षण साफ नजर नहीं आते। कई लोग सालों तक बिना किसी बड़ी परेशानी के रहते हैं। जब लक्षण गंभीर होते हैं, तब तक बीमारी आगे बढ़ चुकी होती है। जांच का मकसद यही होता है कि कैंसर को शुरुआती स्टेज में पकड़ लिया जाए। समय पर जांच से न सिर्फ जान बचाई जा सकती है, बल्कि इलाज भी कम जटिल और कम खर्चीला होता है।

कोलन कैंसर की जांच कैसे होती है: शुरुआती बातचीत और जांच

जब मरीज डॉक्टर के पास जाता है, तो सबसे पहले डॉक्टर उसकी पूरी मेडिकल हिस्ट्री लेते हैं। इसमें पेट दर्द, शौच की आदतें, खून आना, वजन कम होना, थकान और परिवार में किसी को कैंसर रहा है या नहीं, जैसी बातें पूछी जाती हैं। इसके बाद डॉक्टर पेट की सामान्य जांच करते हैं। यह पहला कदम होता है, जिससे डॉक्टर यह समझने की कोशिश करते हैं कि आगे कौन-सी जांच जरूरी होगी।

स्टूल टेस्ट से कोलन कैंसर की जांच

कोलन कैंसर की जांच कैसे होती है, इसका सबसे सरल तरीका स्टूल टेस्ट होता है। इस जांच में मरीज के मल के सैंपल की जांच की जाती है। कई बार मल में खून दिखाई नहीं देता, लेकिन टेस्ट के जरिए छुपा हुआ खून पकड़ा जा सकता है। अगर इस टेस्ट में खून पाया जाता है, तो यह संकेत हो सकता है कि बड़ी आंत में कोई समस्या है। हालांकि यह टेस्ट अकेले कैंसर की पुष्टि नहीं करता, लेकिन आगे की जांच के लिए रास्ता खोलता है।

ब्लड टेस्ट का रोल

ब्लड टेस्ट कोलन कैंसर की जांच में सहायक भूमिका निभाते हैं। इससे शरीर में खून की कमी, संक्रमण या अन्य गड़बड़ियों का पता चलता है। कई कोलन कैंसर मरीजों में खून की कमी पाई जाती है, जो लगातार अंदरूनी ब्लीडिंग की वजह से होती है। इसके अलावा कुछ खास ब्लड मार्कर भी देखे जाते हैं, जो कैंसर की संभावना को मजबूत कर सकते हैं। हालांकि ब्लड टेस्ट से अकेले यह तय नहीं किया जाता कि कैंसर है या नहीं।

कोलोनोस्कोपी: सबसे अहम जांच

जब लोग पूछते हैं कि कोलन कैंसर की जांच कैसे होती है, तो कोलोनोस्कोपी का नाम सबसे पहले आता है। यह सबसे भरोसेमंद और सटीक जांच मानी जाती है। इस प्रक्रिया में एक पतली और लचीली नली, जिसके सिरे पर कैमरा होता है, गुदा के रास्ते बड़ी आंत में डाली जाती है। इससे डॉक्टर पूरी कोलन को अंदर से देख पाते हैं।

अगर कहीं पॉलीप या संदिग्ध हिस्सा दिखाई देता है, तो उसी समय उसका छोटा सा सैंपल लिया जा सकता है। इस जांच के दौरान मरीज को आमतौर पर हल्की बेहोशी दी जाती है, जिससे दर्द या परेशानी महसूस नहीं होती।

बायोप्सी से कैंसर की पुष्टि

कोलोनोस्कोपी के दौरान या किसी अन्य जांच में अगर संदिग्ध ऊतक मिलता है, तो बायोप्सी की जाती है। इसमें उस हिस्से का छोटा सा टुकड़ा लेकर लैब में जांच की जाती है। बायोप्सी से यह साफ पता चलता है कि कोशिकाएं कैंसर की हैं या नहीं। यह जांच कोलन कैंसर की पुष्टि का सबसे पक्का तरीका मानी जाती है।

सीटी स्कैन और एमआरआई की भूमिका

कोलन कैंसर की जांच कैसे होती है, इसमें इमेजिंग टेस्ट भी बहुत जरूरी होते हैं। सीटी स्कैन और एमआरआई से शरीर के अंदर की साफ तस्वीर मिलती है। इन जांचों से यह देखा जाता है कि कैंसर कितनी दूर तक फैला है और आसपास के अंगों पर इसका क्या असर पड़ा है। इससे डॉक्टर इलाज की सही योजना बना पाते हैं।

वर्चुअल कोलोनोस्कोपी क्या है

कुछ मामलों में वर्चुअल कोलोनोस्कोपी भी की जाती है। इसमें सीटी स्कैन की मदद से बड़ी आंत की तस्वीरें ली जाती हैं। यह उन मरीजों के लिए उपयोगी हो सकती है जो सामान्य कोलोनोस्कोपी नहीं करा सकते। हालांकि अगर इसमें कुछ संदिग्ध दिखता है, तो बाद में सामान्य कोलोनोस्कोपी करनी ही पड़ती है।

जांच के दौरान मरीज को क्या ध्यान रखना चाहिए

जांच से पहले डॉक्टर द्वारा दी गई सभी सलाहों का पालन करना बहुत जरूरी होता है। खासकर कोलोनोस्कोपी से पहले आंत को साफ करने की प्रक्रिया होती है। यह थोड़ी असहज लग सकती है, लेकिन सही नतीजों के लिए बेहद जरूरी है। मरीज को डरने की जरूरत नहीं होती, क्योंकि ज्यादातर जांच सुरक्षित और नियंत्रित माहौल में की जाती हैं।

जांच के बाद क्या होता है

जांच के नतीजों के आधार पर डॉक्टर यह तय करते हैं कि आगे क्या करना है। अगर कैंसर शुरुआती स्टेज में होता है, तो इलाज के विकल्प ज्यादा सरल और प्रभावी होते हैं। कई बार पॉलीप को जांच के दौरान ही निकाल दिया जाता है, जिससे कैंसर बनने का खतरा खत्म हो जाता है। यही वजह है कि समय पर जांच जीवन बचा सकती है।

आज ही परामर्श लें

अब यह साफ हो गया होगा कि कोलन कैंसर की जांच कैसे होती है और इसमें कितने तरह के टेस्ट शामिल हो सकते हैं। सबसे जरूरी बात यह है कि लक्षणों को नजरअंदाज न करें और जरूरत पड़ने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। समय पर की गई जांच न सिर्फ बीमारी की पहचान करती है, बल्कि इलाज को भी आसान बनाती है।

अगर आप या आपके परिवार का कोई सदस्य कोलन कैंसर की जांच या इलाज के लिए भरोसेमंद जगह की तलाश में हैं, तो Oncare Cancer Hospital एक बेहतरीन विकल्प है। यहां अनुभवी डॉक्टर, आधुनिक जांच सुविधाएं और मरीज-केंद्रित देखभाल उपलब्ध है, जिससे सही समय पर सही इलाज संभव हो पाता है।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

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